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मिर्जापुर का सिटी ब्लाक: जहा शायद गुटखा खा सकते है, पर खुटका नहीं!

मिर्जापुर का सिटी ब्लाक: जहा शायद गुटखा खा सकते है, पर खुटका नहीं!

दिवारो पर कराये गये वाल पेन्टिंग मे कई अशुद्धियां जरा आप भी देखे

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हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और विभिन्न बैको समेत सभी सरकारी संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी के सम्मान मे इश्तहार भी लगाये रखते है। परन्तु उत्तर प्रदेश के सिटी विकास खण्ड मे कराये गये वाले पेन्टिंग पर ध्यान देने की जरूरत यहा के मुखिया शायद नही समझते। त्रुटिपूर्ण हिंदी पर ऐसा ही एक मामला हम आपको बताने जा रहे है जिसको देखकर आप अधिकारीयों की लापरवाही और उनकी इच्छाशक्ति का आंकलन स्वतः लगा लेंगे। मामला मिर्ज़ापुर मुख्यालय के सिटी ब्लॉक का है जंहा सिटी ब्लॉक के परिसर की दीवारों पर कई जगह नशा और स्वच्छता के लिए वाल पेटिंग लिखे गए है, जिसमे चार लाइन के स्लोगन में एक नहीं, दो नहीं, पांच पांच गलतियां है।

 

इसमे गुटखा को खुटका, परिसर को परिसर,  सीसीटीवी को सीसीटीवी आदि अशुद्धी देखने को मिली। यह गलती सिर्फ किसी मामूली पेंटर की गलती से हुआ या फिर ब्लाक के अधिकारियो ने जो लिखकर दिया उसी को सही समझ पेंटर ने लिखा डाला हो, यह अलग बात है पर परिसर के सबसे बड़े अधिकारी खण्ड विकास अधिकारी ऑफिस के ठीक बाहर ही त्रुटिपूर्ण शब्दों को बड़े और मोटे अक्षरों में लिखकर यह बताया जा रहा है कि हिंदी भले ही राष्ट्रभाषा हो मग़र चूंकि भाषा राष्ट्र की है इसलिए ये घोर लापरवाही बर्दाश्त के योग्य है शायद यही सोच रखते है जिम्मेदार। देखा जाये तो पिछले 3 महीनो से खुलेआम हिंदी भाषा का अपमान किया जा रहा है।

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कार्यालय में उपस्थित लोगों ने बताया की सन्देश के पीछे उद्देश्य भले ही पाक व पवित्र हो परन्तु गलत ढंग से शब्दों को लिखना वो भी उच्च अधिकारीयों के निर्देश पर त्रुटियुक्त स्लोगन हास्य का कारण ही नहीं साबित हो रहा है बल्कि सर झुकाने के लिए शर्म का कारण भी बन रहा है। जब इस विषय पर बीडीओ से पूछा गया तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए इस पर बोलने से इनकार कर दिया। अब तक कई हजार आगन्तुकों को दिग्भ्रमित करने वाला ये उच्चारण इतने लम्बे समय से क्यों नही ठीक कराये गये। यह एक बड़ा सवाल आम जनमानस के बीच सुनाई दे रहा है। इस सम्बन्ध में बीडीओ ने दीवारों पर लिखे इन हास्यास्पद व त्रुटिपूर्ण शब्दों के लिखे जाने की जानकारी देने के बाद भी उठकर देखने की जहमत उठाना भी लाज़मी ना समझा। इससे एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि क्या सिर्फ पेंटर के बजट पास करने तक का ही अधिकारीयों की जिम्मेदारी है ? या उस पर क्या लिखा जा रहा है इससे भी कोई सरोकार है ?

 

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