संपादकीय

लॉकडाउन में उदास महसूस कर रहे लोगों के लिए प्रेरणा: सुनीता सिंह

सुनीता सिंह की कलम से…..

आज देश ही नहीं, बल्कि सारी दुनियाँ पर संकट के बादल मंडरा रहा है, ऐसे में lockdown ही एक उपाय है, बचाव का।
सभी पहलु और लोगो की परेशानियाँ देखते हए ये अत्यंत ज़रूरी हो गया था कि हम कुछ बिंदूओं पर चर्चा करें।
लॉक डाउन समस्या है या अवसर , इस बात को समझने के लिए हमें खुद को समझने की आवश्यकता है।
सच ही कहा गया है कि ——“हूँ बहुत दिन से मगर दुनियाँ को कुछ जाना नहीं , और साँस को भी कभी अपना माना नहीं ,लोग कहते हैं चंद्रमा क़ी जानकारी है उन्हें , एक मैं हूँ जिसने खुद को भी जाना नहीं।”
तो ये लाज़िमी है कि सबसे पहले हमें खुद को जानने से हाई शुरुआत करना चाहिए ।अब हमें अपनी आदतों में बदलाव की ज़रूरत है।
अगर देखा जाए तो लॉकडाउन ने हमें ना चाहते हुए भी वो अवसर दिया है जब हम अपने आप को समझ सके । अगर नकारात्मक विचारो से उबर सको तो आप पाओगे की ये अवसर blessing in disguise है और ये आप पर निर्भर करता है की आपने इसका उपयोग क़िया या दुरुपयोग ।
21 दिनो के लॉकडाउन का वो असर नहीं रहा क्योंकि हम हर काम में कुछ ज़्यादा ही जोश दिखाते हैं। जब ताली – थाली बजाने को बोलो को गरबा करते है, दीया जलाने का कहो तो पटाखे चलाते है। ऐसे में लाक्डाउन बढ़ेगा नहीं तो और क्या होगा । लोगों ने अगर स्थिति की नाजुकता को समझते हुए बुद्धिमानी का परिचय दिया होता तो शायद स्थिति बेक़ाबू ना होती । लाक्डाउन के समय को लोगों ने कुछ ऐसे काटा जो गुलज़ार साहब की पंक्तिया बयान कर रही –

“दिन इस तरह गुज़ारता है कोई ,
जैसे अहसान उतारता है कोई “
ख़ैर जो हुआ उसे भूलाकर अब तो सचेत हो जाए नहीं तो 10% ग़ैर जिम्मेदारों के कारण 90% समझदारों को भी भुगतना होगा । हाँ हिंदुस्तानी जाँबाज़ है पर ये जंग पराक्रम दिखा कर नहीं सहनशीलता और धैर्य दिखाकर ही जीता जाएगा। मिलकर नहीं दूर रह कर जीता जाएगा , बाद ऐसी ही विपरीत परिस्थितियाँ है ये , पर इस पर जीत होगी जब हम इससे दर कर रहेंगे ।
अब जो लाक्डाउन हो ही गया तो क्यों ना इस समय को उन कामों में लगा दे जो समय की कमी से “काश कर पाते “ बना रह जाता था । घर समयाभाब से इच्छाअनुसार सजा नहीं था तो अब सजा ले । परिवार के सदस्य साथ खाना बात – चीत नहीं कर पाते थे , उन सबको पूरा कर के। अब जो जीवन दोबारा वयस्त हुआ तो फिर ये सब हो ना हो । एक साथ बैठ कर संस्कारों से भरे कार्यक्रम टी॰वी॰ में देखें। संस्कृति का ज्ञान दे बच्चों को । बाग़वानी का शौक़ पूरा करे । और तो और स्वस्थ रहने के किए योगा कसरत के लिए भी समयाभाव की शिकायत थी तो क्यों ना वो शिकायत दूर कर लें । online कोर्स कर ले । अगर आप चाहेंगे तो इस समय के स्वर्णिम यादों को सजा सकते है वरना तो-दो कर भी काटना तो होगा ही । इसका कोई विकल्प नहीं ।

“मुद्दत से आरज़ू थी क़ि फ़ुरसत मिले , जब मिली तो इस शर्त पर कि किसी से ना मिलो “
कुछ मुश्किल ज़रूर है पर नामुमकिन नहीं/ तो चलो इस लाक्डाउन को सफल बनाए और अवसर को खुद को पहचानने में लगाएँ ।अरस्तू ने कहा भी है —-
“स्वयं को जानना सभी ज्ञान की शुरुआत है “।

आप इस बात को समझने का प्रयास ज़रूर करें —-
“पहुँच गई गिनती हज़ारों में , इसे लाख मत होने दो ,
रुक जाओ घरों में अपने , वतन को ख़ाक मत होने दो “
स्वस्थ रहें मस्त रहें!!

              (लेखक जयपुरिया स्कूल में प्रधानाचार्य है।)

 

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