ज्ञान-विज्ञान

विश्व पृथ्वी दिवस पर आयोजित की गई दो दिवसीय ऑन लाइन कार्यशाला

मिर्जापुर।

अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल के अवसर पर जिला विज्ञान क्लब द्वारा दो दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें जनपद के 143 बाल वैज्ञानिक छात्र एवम छात्राएं एवम विज्ञान संचारको ने प्रतिभगिता की। विशेषज्ञ के रूप में जिला समन्यवक सुशील कुमार पांडेय, असिस्टेंट प्रोफेसर वनस्पति डॉक्टर ए सी मिश्र, भूभौतिकी विशेषज्ञ यस के शुक्ल, एवम पर्यावरण विज्ञान में शोध छात्र कीर्ति सिंह ने अपने विचार रखे। प्रथम दिन पृथ्वी पर बढ़ते तापमन, जीवन की गुणवत्ता पर गर्मी का प्रभाव, ग्रीन हाउस प्रभाव के बारे में जानकारी दी गयी।

 

जिला समन्यवक सुशील कुमार पांडेय ने कहाकि प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। यह 53 वा पृथ्वी दिवस है। इस दिवस की 1970 से मनाने की शुरुआत सन्युक्त राज्य अमेरिका में हुई इसका श्रेय अमेरिकी सिनेटर गेलार्ड नेल्सन को जाता है। यह दिवस पर्यावरण को बचाने की एक मुहिम के अंतर्गत एक थीम पर मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम’हमारे ग्रह में निवेश करें’निर्धारित किया गया है।

सौर मंडल के समस्त ग्रहों में हमारी पृथ्वी अद्वितीय है। एक मात्र यही ऐसा ग्रह है जहाँ पर विविध पारिस्थितिकी तंत्रों में जीवन के हजारों लाखों रूप खिलखिला रहे है। इस अनोखे ग्रह पर पानी और ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा एवम विशिष्ट परिस्थितियों का पाया जाना जीवन के लिए बरदान बना हुआ है। ऐसी अनेक विशेषताओं के कारण ही करोङो वर्षो से यह ग्रह पनाह देता आया है, लेकिन वर्तमान में इस ग्रह पर करोङो वर्षो की विकास यात्रा के दौरान निर्मित हुआ संतुलन, जलवायु परिवर्तन के कारण गड बड़ा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी और यहां पर उपस्थित जीवन को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

वनस्पतिशास्त्री डॉक्टर एसी मिश्र ने कहा कि आज से करीब 4.6 अरब साल पहले पृथ्वी का निर्माण हुआ था। उस समय यह ग्रह जीवन विहीन और जीवन के लिए प्रतिकूल स्थान था। प्राकृतिक विकास का चक्र आरम्भ हुआ और धीरे धीरे पृथ्वी अपने जीवन दाई रूप में पहुची। हाल के वर्षों में  पृथ्वी की जलवायु में देखे जा रहे बदलावों के परिणाम स्वरूप जीवो के स्वास्थ्य के लिए चिंता बनी हुई है। पृथ्वी पर जलवायु पर प्रभाव डालने के अतिरिक्त वैश्विक ताप बृद्धि मानव स्वास्थ्य को गम्भीर रुप से प्रभावित कर सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक ताप बृद्धि को पृथ्वी के औसत तापमान में बढ़ोत्तरी के रूप में परिभाषित किया जाता है। जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइ और मीथेन जैसी गैसे पृथ्वी को गर्म रखती है, इसलिए इन्हें ग्रीन हाउस गैस कहते है। इस प्राकृतिक ग्रीन हाउस प्रभाव की अनुपस्थिति में ग्रह का औसत सतही तापमान जीवन के लिए प्रतिकूल होताऔर ग्रह पर जीवन नही होता। प्रकृतिक ग्रीन हाउस प्रभाव सदा से अपना कार्य करता आ रहा हैऔर पृथ्वी को जीवन के लिए अनुकूल बनाये हुए है, परंतु पिछली सदी के दौरान मानव गतिविधियों विशेषकर जीवधम ईंधनों का दहन और बनो की कटाई जैसी गतिविधियों ने इतनी अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित की है। इनसे इस ग्रह की जलवायु के लिए खतरा पैदा हो गया है और इसी के चलते ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक ताप बृद्धि की समस्या उतपन्न हो रही है।

भू भौतिकी विशेषज्ञ डॉक्टर यस के शुक्ल ने कहा कि पृथ्वी पर गर्माहट बढ़ रही है। इस तपिश के परिणामश्व रूप पृथ्वी में बदलाव आ रहा है। ध्रुवो पर बर्फ पिघल रही है और पर्वतों पर ग्लेशियर घट रहे है। समुद्रों का जल स्तर बढ़ने से जनसमूहों का पलायन खाद्य आपूर्ति बाधित होने के कारण कुपोषण, रोगाणुओं के प्रसार में सहायक किट के हमलों में बृद्धि और जल जनित रोगों जैसी समस्या बढ़ सकती है।

एक अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन हर वर्ष करीब 1.5 लाख लोगों के मृत्यु के लिए जिम्मेदार है। सजे अलावा भविष्य में एलर्जी सम्बन्धी समस्याओं के अलावा श्वसन सम्बन्धी विकार उतपन्न होंगे। ऐसी संभावना है कि 2070 तकदुनिया की लगभग 60 फीसदी आबादी ऐसे जलवायु क्षेत्रो में निवास कर रही होगी जो मलेरिया के विस्तार के लिए अनुकूल होगी।

पर्यावरण विज्ञान में शोध छात्रा कृति सिंह ने कहा कि मानव शरीर पर वैश्विक ताप बृद्धि का प्रभाव पङता है।मनुष्य एक सीमित तापमान के दायरे के अन्दर आराम से रह सकता है। अल्पवधि उतार चढ़ाव जैसे अत्यधिक गर्म दिनों को झेलना विशेषकर कठिन होता है। इस स्थिति मेबेहोशी, हृदयस्पन्दन में तेजी, रक्तदाव में गिरावट, त्वचा में रूखापन एवम ठंडापन तथा जी मचलाने जैसे लक्षणों के साथ हीट  ऐक्जन्सन हो जाता है।

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